महाकुंभ रहस्य: 869 गुमशुदा, डॉक्टर की पत्नी आज भी गायब!

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प्रयागराज महाकुंभ का आयोजन संपन्न हो चुका है, लेकिन इस दौरान 869 पारिवारिक मामले ऐसे हैं, जहां के सदस्य अभी भी लापता हैं। ये परिवार अपने प्रियजनों की तलाश में हैं जो महाकुंभ के दौरान उन्हें छोड़कर कहीं गायब हो गए हैं। यह स्थिति खोया-पाया केंद्र पर दर्ज की गई है, जहां लोगों ने अपने बिछड़े हुए रिश्तेदारों के लिए सूचनाएं दी हैं। दैनिक भास्कर की टीम ने इस मुद्दे को खंगालने के लिए खोया-पाया केंद्र का दौरा किया, जहां कुछ दिल दहला देने वाली कहानियां प्रकट हुईं।

खोया-पाया केंद्र का हाल बताते हुए, यह बताया गया कि कैंप के बाहर का माहौल सन्नाटे में लिपटा हुआ था, जबकि पहले यहां की ओर कई लोगों की भौतिक भीड़ होती थी। दीवार पर पोस्टर चस्पा थे, जिनमें लापता बुजुर्ग और महिलाओं की तस्वीरें थीं। कई मामलों में इनाम की घोषणा भी की गई थी। पोस्टर में प्रकाशित कुछ नंबरों पर संपर्क करने पर कई परिवारों की दर्द भरी कहानियाँ सामने आईं, जिन्होंने अपने प्रिय जनों की खोज में कठिनाईयों का सामना किया।

उदाहरण के तौर पर, 51 वर्षीय ग्यारसा माली का मामला है, जो महाकुंभ में स्नान के लिए घर से निकले थे और प्रयागराज स्टेशन के निकट लापता हो गए। उनके बेटे धनवेस माली ने बताया कि वे अब भी प्रयागराज में हैं, अपने पिता की वापसी की उम्मीद में। इसी तरह, बिहार की प्रीति किशोर भी गुमशुदा हो गईं। उनके पति ने बताया कि भीड़ में उन्हें खो दिया गया और तब से उनका कोई अता-पता नहीं है। फिर, 60 वर्षीय अजय पांडेय का भी मामला है, जो परिवार के साथ संगम स्नान करने आए थे और वहां भीड़ में लापता हो गए।

एक और गंभीर मामला रेखा द्विवेदी का है, जो अकेली प्रयागराज के शेल्टर होम में रह रही हैं, जबकि उनका परिवार उन्हें लेने नहीं आया। यह दिखाई देता है कि भले ही उनके पति और बेटे अच्छी स्थिति में हैं, लेकिन रेखा को उनका अपने बेटे और पति का सहारा नहीं मिल रहा है। खोया-पाया केंद्र के स्टाफ ने कहा कि वे मीडिया से कोई जानकारी साझा नहीं कर सकते, और इस मामले में मेला प्रशासन से बात करने को कहा।

महाकुंभ में 30 देशों के श्रद्धालु आए थे और कुल 45 दिनों में 66.32 करोड़ लोगों ने स्नान किया। इस दौरान खोया-पाया केंद्र पर 35,952 मामलों को दर्ज किया गया था, जिसमें से 869 मामले अब भी अधूरे हैं। प्राइवेट संस्थाएं भी इस दिशा में मदद कर रही हैं। उदाहरण के लिए, भारत सेवा केंद्र ने 19,274 बिछड़े लोगों को उनके परिवारों से मिलवाने में सहायता की।

महाकुंभ की समाप्ति के बाद भी संगम का नजारा वैसा ही बना हुआ है, और यहां रोज़ाना 2 लाख श्रद्धालु आ रहे हैं। श्रद्धालुओं का कहना है कि संगम स्थल की पवित्रता कभी कम नहीं होती है। इस तरह की घटनाएं महाकुंभ की भव्यता को निरूपित करती हैं, लेकिन साथ ही यह भी दिखाती हैं कि आयोजनों के दौरान भीड़भाड़ के बीच रिश्तों की जटिलताएं भी होती हैं।