किसी स्थान पर कुंभ का आयोजन 12 साल में हो, यह जरूरी नहीं, 11 साल के अंतर पर भी हो सकता है : सारिका घारू 

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किसी स्थान पर कुंभ का आयोजन 12 साल में हो, यह जरूरी नहीं, 11 साल के अंतर पर भी हो सकता है : सारिका घारू 

भोपाल, 13 जनवरी (हि.स.)। उत्तर प्रदेश की संगम नगरी प्रयागराज में सोमवार को महाकुंभ की शुरुआत हो चुकी है। यहां एक महीने से अधिक चलने वाले इस आयोजन में देश-दुनिया के करोड़ों लोग शामिल होकर गंगा में आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। महाकुंभ को लेकर आम लोगों का मानना है कि किसी एक स्‍थान पर कुंभ का आयोजन 12 साल बाद होता है, लेकिन हर बार ऐसा हो, यह जरूरी नहीं है। किसी एक स्‍थान पर कुंभ का दोबारा आयोजन 11 वर्ष बाद भी हो सकता है।

नेशनल अवार्ड प्राप्‍त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने सोमवार को इस बारे में वैज्ञानिक बताया कि कुंभ किस साल आयोजित होगा, इसके लिये यह देखा जाता है कि बृहस्‍पति किस तारामंडल में है। महीने को निर्धारित करने के लिये यह देखा जाता है कि सूर्य किस तारामंडल में है। जुपिटर लगभग 12 साल बाद पुन: उसी तारामंडल में लौटता है, इसलिये किसी स्‍थान पर 12 साल बाद कुंभ भी दोबारा होता है।

सारिका ने बताया कि वैज्ञानिक गणना के अनुसार बृहस्‍पति 12 साल में लगभग 50 दिन पहले ही 4,330.5 दिन में सूर्य की परिक्रमा कर लेता है, जबकि 12 साल में 4380 दिन होते हैं। यह 50 दिन का अंतर 7वें या 8वें कुंभ के बाद एक साल का हो जाता है। इस कारण जुपिटर 11वें साल में निर्धारित तारामंडल में आ जाता है और उस स्‍थान पर कुंभ आयोजन 11 वें वर्ष में ही किया जाता है। ऐसा हरिद्वार में हुआ था, जब 2010 के बाद 2021 में कुंभ हुआ था। इसके 83 साल पहले 1938 मे 11वें साल यह आयोजन हुआ था।

उन्होंने बताया कि इस तरह कुंभ आयोजन घड़ी या कैलेंडर से तय नहीं होता, बल्कि इसे आकाशीय घड़ी में बृहस्‍पति और सूर्य के कांटे तय करते हैं। सबसे खास बात यह है कि यह आकाशीय घड़ी बिना किसी भेदभाव के हर आमजन को बताती है कि कुंभ की घड़ी आ गई।—————