याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता आमिर अजीज ने बताया कि याचिकाकर्ता करीब तीन दशक पहले चुंगी व्यवस्था के तहत नियुक्त हुए थे। वहीं चुंगी समाप्त होने पर उनकी सेवाएं पंचायती राज विभाग को दे दी गई। जहां उन्हें नियमित वेतन और भत्ते देने के के बजाए 190 रुपए मासिक वेतन दिया गया। वहीं अब यह वेतन बढकर 12 सौ रुपए मासिक हो गया है। ऐसे में उन्हें राज्य सरकार की अधिसूचना के तहत नियमित करना चाहिए थे। वहीं याचिकाओं का विरोध करते हुए राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति आरंभ में बिना किसी भर्ती प्रक्रिया और बिना स्वीकृत पदों पर हुई थी। हालांकि चुंगी व्यवस्था समाप्त होने पर सरप्लस कर्मचारियों को समाहित करने का निर्णय लिया गया था। इसके तहत विभाग के उस सचिव ने 14 नवंबर, 2000 को सामान्य आदेश जारी कर कई अन्य कर्मचारियों को पंचायती राज विभाग में समाहित कर नियमित किया गया। जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने याचिकाकर्ताओं को नियमित करने पर विचार करने को कहा है।