19 फरवरी, 2025 को कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपने संसदीय क्षेत्र रायबरेली में थे, जबकि प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हो रहा था, जो कि लगभग 122 किमी दूर स्थित है। इस बीच, स्थानीय राजनीति में चर्चा थी कि राहुल महाकुंभ में स्नान करने के लिए जा सकते हैं, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उसी समय अयोध्या में भव्य राम मंदिर उद्घाटन समारोह भी आयोजित किया गया, जिसमें राहुल गांधी और गांधी परिवार ने भाग नहीं लिया। दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सभी बड़े नेता, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह एवं अन्य शामिल थे, महाकुंभ में स्नान करने का लाभ उठाने के लिए पहुंचे थे। इस बार महाकुंभ में देश-विदेश से 66 करोड़ से अधिक लोगों ने आस्था की स्नान किया। इससे कांग्रेस की अयोध्या और महाकुंभ के प्रति दूरी को लेकर सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह एक राजनीतिक स्ट्रेटेजी है या इसके साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं।
राजनीतिक विशेषज्ञ इसे कांग्रेस की रणनीतिक चूक बताने लगे हैं। विशेषज्ञ एनके सिंह का कहना है कि जब भी हिंदुत्व की बातें होती हैं, कांग्रेस भाजपा के इस हार्डकोर पिच पर खेलने से बचना चाहती है। ऐसे में, पार्टी के पास भाजपा से अलग दिखने का कोई अन्य विकल्प नहीं रह जाता। इस स्थिति में, कांग्रेस ने महाकुंभ में जाने वाले अपने नेता को नहीं रोका, बल्कि कांग्रेस के कई नेता, जैसे अजय राय, सुखविंदर सिंह सुक्खू और अन्य ने महाकुंभ में स्नान किया। उनकी कोशिश यह दिखाने की थी कि यह आस्था का विषय है और महाकुंभ में जाना या न जाना व्यक्तिगत निर्णय होना चाहिए।
मान्यताओं के अनुसार, कांग्रेस ने पहले भी इसी तरह की रणनीति अपनाई थी, जैसे 2019 के कुंभ में राहुल और प्रियंका ने स्नान किया था। हालांकि, इस बार राहुल गांधी महाकुंभ में जाने से पीछे हट गए। जब उनसे इस विषय में मीडिया ने सवाल किया, तो उन्होंने चुप्पी साध ली और दौरा खत्म कर दिल्ली लौट गए। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि गांधी परिवार द्वारा महाकुंभ में भाग न लेने से कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
इस संदर्भ में, मुस्लिम फर्स्ट की राजनीति भी कांग्रेस को भारी पड़ रही है। राजनीतिक विश्लेषक मिन्हाज मर्चेंट ने सुझाव दिया है कि कांग्रेस को इस प्रमुख धर्म के मानने वालों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। महाकुंभ पर कांग्रेस के रवैये ने भी यही ट्रेंड दिखाया है। इसके अलावा, कई वर्षों पहले राहुल गांधी ने मंदिरों का दौरा कर खुद को ब्राह्मण साबित करने की कोशिश की थी, जिससे उन्हें कुछ राजनीतिक लाभ भी मिला था। अब, कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपने गठबंधन सहयोगियों से भी आलोचना का सामना कर रही है, जो महाकुंभ में शामिल हो गए थे और इस ऑर्केस्ट्रा में कांग्रेस के नेता अपने मत के साथ अलग दिखने की कोशिश कर रहे थे।
अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी भविष्य में इस प्रकार की धार्मिक आस्था के आयोजनों में भाग लेने का निर्णय बदलते हैं या नहीं। भाजपा के मुकाबले में कांग्रेस की यह दूरी राजनीतिक स्तर पर उनके लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है, और इसे ध्यान में रखते हुए उन्हें अपनी चुनावी रणनीति में बदलाव की आवश्यकता हो सकती है।