योगी सरकार 2.0 का तीन साल का कार्यकाल 25 मार्च को पूरा होने जा रहा है और इस अवसर पर भाजपा कार्यकर्ताओं को राजनीतिक नियुक्तियों का तोहफा मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व के निर्देशानुसार, उत्तर प्रदेश भाजपा ने इससे संबंधित तैयारियां शुरू कर दी हैं। इसके तहत 10 पदों पर नियुक्तियां होने की संभावना है, जिनमें कार्यकर्ताओं को 20,000 से लेकर 50,000 रुपये तक का मानदेय दिया जाएगा। ऐसा करने का उद्देश्य नाराज कार्यकर्ताओं के मन को जीतना है, खासकर पंचायत और विधानसभा चुनावों के मद्देनजर।
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े 14 फरवरी को लखनऊ के दौरे पर आए थे, जहां उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप-मुख्यमंत्री केशव मौर्य और ब्रजेश पाठक के साथ बैठक की। इसके साथ ही उन्होंने जलशक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही, पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी से भी बातचीत की। इस दौरान, उन्होंने सभी से राजनीतिक नियुक्तियों के विषय में चर्चा की और कहा कि केंद्रीय नेतृत्व कार्यकर्ताओं के समायोजन के लिए जल्द नियुक्तियों की मांग कर रहा है।
भाजपा में कार्यरत एक पदाधिकारी ने जानकारी दी कि पार्टी पंचायत चुनाव 2026 और विधानसभा चुनाव 2027 की तैयारी शुरू करने की योजना बना रही है। वर्तमान में, कई जिलों में भाजपा कार्यकर्ता असंतुष्ट हैं, और उनकी नाराजगी दूर करने का सबसे बेहतर उपाय राजनीतिक नियुक्तियां करना है। इन नियुक्तियों का लाभ 10,000 से अधिक कार्यकर्ताओं को सीधे मिलेगा, क्योंकि निगम, आयोग और बोर्ड में कार्यकाल आमतौर पर 3 से 5 साल का होता है। ऐसे में कार्यकर्ताओं की नियुक्तियां जल्द होनी आवश्यक हैं।
उतर प्रदेश में कुल 17 नगर निगम, 200 नगर पालिका परिषद और 490 नगर पंचायतें हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इनमें करीब 5,000 से अधिक सभासद और पार्षद मनोनीत किए जाएंगे, जिसमें स्थानीय विधायक, सांसद और जिलाध्यक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। पार्टी ने अब सभी जिलों से नाम मांगने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। मनोनीत पार्षदों की संख्या कुल पार्षदों की संख्या का 10% तक होती है, जैसे लखनऊ में 110 चुने हुए पार्षदों में से 10 पार्षद मनोनीत किए जाएंगे।
राजनीतिक नियुक्तियों में कार्यकर्ताओं को 20,000 से 50,000 रुपये तक का मानदेय प्राप्त होता है। कुछ आयोगों में अध्यक्ष और सदस्यों का मानदेय शासन के प्रमुख सचिव के वेतनमान के बराबर भी हो सकता है। इसके अलावा, लखनऊ स्थित अधिकारियों को आवास, वाहन और सुरक्षा गार्ड जैसी सुविधाएं भी मिलती हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कार्यकर्ताओं के लिए किसी पद का वेतनमान दूसरे के मुकाबले ज्यादा नहीं, बल्कि उनके समाज और क्षेत्र में प्रभाव और प्रतिष्ठा का महत्व अधिक होता है।
इस बीच, कुछ नेताओं ने पार्टी नेतृत्व को सुझाव दिया है कि राजनीतिक नियुक्तियों में सभी समाजों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इससे एक-एक जाति या समुदाय को प्राथमिकता देने का गलत संदेश नहीं जाएगा। पिछले साल की नियुक्तियों में एक या दो जातियों का भेदभाव देखने को मिला था, जिस पर केंद्रीय नेतृत्व को भी शिकायत की गई थी। इस बार अल्पसंख्यक आयोग में भी अध्यक्ष पद के लिए सिख समुदाय ने अपनी मांग पेश की है, जिसके लिए उनके प्रतिनिधियों ने सीएम और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष से बातचीत की है।
इस प्रकार, योगी सरकार 2.0 के कार्यकाल की समाप्ति के इस अवसर पर राजनीतिक नियुक्तियां कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाने और आगामी चुनावों की तैयारियों में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती हैं। पिछले वर्षों में नियुक्तियों में देरी के कारण हुए विवादों को समाप्त कर सभी समाजों को सही तरीके से प्रतिनिधित्व देने की दिशा में भी सरकार की यह पहल महत्वपूर्ण है।