जय अंबानंद गिरि, जो कि श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़े की महामंडलेश्वर हैं, ने अपने जीवन की प्रेरणादायक कहानी साझा की है। उन्होंने बताया कि वह पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर हैं और उनकी माता शिक्षित नहीं थीं। बचपन में, उन्होंने अपनी मां के आग्रह पर गीता और भागवत पुराण जैसे धार्मिक ग्रंथों को सुनकर ज्ञान अर्जित किया। यह अनुभव उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा, क्योंकि इससे उन्हें न केवल धार्मिक शिक्षा मिली, बल्कि जीवन की गहरी समझ भी विकसित हुई।
अंबानंद गिरि ने बताया कि उनकी शिक्षा सिर्फ धार्मिक ग्रंथों तक सीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने पढ़ाई के क्षेत्र में भी उत्कृष्टता प्राप्त की। उन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी में मैनेजर के रूप में काम किया, जहाँ उन्होंने प्रबंधन कौशल और नेतृत्व के गुण विकसित किए। हालांकि, कुछ समय बाद, उन्होंने इस सफल करियर को छोड़ने और संन्यास लेने का निर्णय लिया, ताकि वह आध्यात्मिकता की ओर बढ़ सकें और अपने जीवन को एक नए दिशा में आगे बढ़ा सकें।
उनकी बहु-भाषा दक्षता भी काबिले तारीफ है, क्योंकि अंबानंद गिरि छह विभिन्न भाषाओं में पारंगत हैं। यह उनकी बहु-आयामी विचारधारा और संवाद कौशल को दर्शाता है, जो उन्हें विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों के लोगों के साथ जोड़ता है। आज के डिजिटल युग में, उनके इंस्टाग्राम पर 78 हजार और फेसबुक पर 3.5 लाख से अधिक फॉलोवर्स हैं, जो उनके विचारों और शिक्षाओं को सुने और समझने के लिए उत्सुक हैं।
अंबानंद गिरि का जीवन इस बात का प्रतीक है कि कैसे एक साधारण शुरुआत से भी उच्चतम शिखरों तक पहुंचा जा सकता है। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि यदि इरादा मजबूत हो और ज्ञान की प्यास हो, तो कोई भी व्यक्ति अपने सपनों को साकार कर सकता है। वे आज के युवाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं, जिनके माध्यम से वे जीवन के कठिन और महत्वपूर्ण निर्णयों के बारे में सीख सकते हैं।
इस प्रकार, जय अंबानंद गिरि का जीवन केवल व्यक्तिगत सफलताओं की कहानी नहीं है, बल्कि उन्होंने अपने ज्ञान और अनुभवों को साझा करके समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है। वे यह दर्शाते हैं कि आध्यात्मिकता और शिक्षा का संगम व्यक्ति को एक साधारण जीवन से उच्चतम उद्देश्य की ओर ले जा सकता है। उनकी कहानी हमारे लिए प्रेरणा है और हमें अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है।