दिल्ली जीतकर भाजपा ने दिखाई धमक

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दिल्ली जीतकर भाजपा ने दिखाई धमक

रमेश सर्राफ धमोरा

दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बड़ी जीत हासिल कर अपनी धमक दिखायी है। 1998 में भाजपा दिल्ली विधानसभा चुनाव हार गई थी। उसके बाद इस बार के चुनाव में भाजपा जीत कर अपनी सरकार बनाने वाली है। लगातार छह बार विधानसभा चुनाव हारने से भाजपा के लिए इस बार के दिल्ली विधानसभा के चुनाव बड़ी प्रतिष्ठा के सवाल बने हुए थे। इसीलिए भाजपा ने दिल्ली विधानसभा के चुनाव में जीत हासिल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया। इस बार भाजपा ने दिल्ली में मुख्यमंत्री रहे अरविंद केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया सहित आम आदमी पार्टी के कई दिग्गज नेताओं को हराकर अपनी पुरानी हार का बदला ले लिया है।

पिछले लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने करीब 30 विपक्षी दलों को साथ लेकर भाजपा के खिलाफ मजबूत इंडी गठबंधन बनाया था। जिसमें शामिल सभी विपक्षी दलों ने ज्यादातर सीटों पर एक साथ मिलकर चुनाव लड़कर भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी। लोकसभा चुनाव में भाजपा नीत एनडीए गठबंधन को 293 लोकसभा सीटें मिली। वहीं इंडी गठबंधन ने 236 सीटें जीती। कांग्रेस 53 सीटों से बढ़कर 99 सीटों पर पहुंच गई। इसी तरह समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में 5 सीटों से बढ़ कर 37 सीटों पर पहुंच गई।

लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पूरा भरोसा था कि उनकी पार्टी की सरकार बनेगी। इसलिए कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव से इतर विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी से समझौता नहीं कर अकेले चुनाव मैदान में उतरी। हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 48 सीटें जीत कर कांग्रेस को करारी शिकस्त दी। हरियाणा में जीत से देशभर में भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं का मनोबल भी बढ़ा। भाजपा ने हरियाणा में जहां लगातार तीसरी बार सरकार बनायी, अब तक की सबसे अधिक 48 सीटें जीत कर यह दिखा दिया कि लोकसभा चुनाव में पार्टी को उम्मीदों से कहीं कम सीटें मिलने से कार्यकर्ता निराश नहीं हैं।

उसके बाद महाराष्ट्र व झारखंड विधानसभा के चुनाव संपन्न हुए। महाराष्ट्र में भाजपा ने अब तक की सबसे अधिक सीटें जीतकर नया रिकॉर्ड बनाया। झारखंड में भाजपा चुनाव हार गई मगर महाराष्ट्र में भाजपा की बड़ी जीत में झारखंड की हार दब कर रह गई। महाराष्ट्र में भाजपा ने अकेले 132 सीटें जीती जो अब तक की सबसे अधिक थी। वहीं, भाजपा के सहयोगी शिवसेना व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने भी करीब 100 सीटें जीतकर महाराष्ट्र में कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी शरद चंद्र पवार व शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे को मात्र 46 सीटों पर समेट दिया। हरियाणा व महाराष्ट्र चुनाव भाजपा के लिए नई संजीवनी साबित हुए। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन महाराष्ट्र में महज 17 सीटें ही जीत पाया था। मगर विधानसभा चुनाव में मिली बंपर जीत ने लोकसभा चुनाव की हार को भुला दिया।

हाल ही में दिल्ली विधानसभा के चुनाव में भी भाजपा ने पहली बार 48 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया। दिल्ली विधानसभा में भाजपा पिछले 26 वर्षों से सत्ता से बाहर थी। दिल्ली में 1998, 2003 व 2008 में लगातार तीन बार कांग्रेस की सरकार बनी थी। वहीं, 2013, 2015 व 2020 में लगातार तीन बार आम आदमी पार्टी की सरकार बनी थी। 2015 में महज 3 सीट व 2020 में मात्र 8 सीट जीतने वाली भाजपा ने इस बार 48 सीट जीतकर अपनी ताकत का अहसास करवाया है।

हालांकि 2014, 2019 व 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा दिल्ली की सभी 7 सीटे जीतकर हैट्रिक बना चुकी है। मगर विधानसभा चुनाव में लगातार 6 बार सत्ता से बाहर रहने के कारण भाजपा इस बार हर हाल में दिल्ली में सरकार बनाना चाहती थी। इसके लिए भाजपा के सभी नेता व कार्यकर्ताओं ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। यदि भाजपा इस बार भी दिल्ली में चुनाव हार जाती तो आगे आने वाले बिहार, असम विधानसभा के चुनाव में उसे नुकसान उठाना पड़ सकता था।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 48 सीटों के साथ 45.56 प्रतिशत वोट हासिल किए। दिल्ली में यह भाजपा का अब तक का सर्वोच्च चुनावी आंकड़ा है। पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में जहां भाजपा की 40 सीट बढ़ गई हैं, वहीं उसका वोट प्रतिशत भी 7.38 प्रतिशत बढ़ा है। भाजपा को कुल 46 लाख 23 हजार 110 वोट मिले हैं। वहीं, आम आदमी पार्टी महज 22 सीटों पर सिमट गई। उसे 43.57 प्रतिशत मत मिले हैं। जो पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में 10 प्रतिशत कम हैं। आम आदमी पार्टी को 41 लाख 33 हजार 898 वोट मिले हैं।

इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने के लिए भाजपा ने चुनावों के दौरान आम आदमी पार्टी की आपदा पार्टी वाली छवि बना दी थी। पार्टी के बड़े नेता अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया सत्येंद्र जैन, संजय सिंह को भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जाने को भाजपा ने बड़ा मुद्दा बना कर दिल्ली की जनता को आम आदमी पार्टी की वास्तविकता से रूबरू करवाया। इसके साथ ही अरविंद केजरीवाल द्वारा मुख्यमंत्री आवास में करवाए गए कार्यों को भाजपा ने शीशमहल कहकर प्रचारित किया। जिससे दिल्ली के आम मतदाताओं को लगने लगा कि जिस पार्टी को वह अपनी हमदर्द पार्टी मानकर लगातार तीन बार से चुनाव जीतवा रहा है, उस पार्टी के नेता भी अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं की तरह भ्रष्टाचार करने लगे हैं। मतदाताओं की यह सोच आम आदमी पार्टी के खिलाफ गई और उसे चुनाव में करारी पराजय झेलनी पड़ी।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार मतदाताओं ने दलबदलुओं को भी उनकी औकात दिखा दी। 24 दलबदलू नेता भाजपा, आप व कांग्रेस पार्टी से टिकट प्राप्त कर चुनाव मैदान में उतरे थे। जिनमें 9 नेता ही चुनाव जीत सके। बाकी 15 प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा। दलबदलुओं में 6 भाजपा के चुनाव चिह्न व 3 आप के चुनाव चिह्न पर जीते। दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल के मुकाबले भाजपा ने किसी स्थानीय नेता की बजाय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि पर चुनाव लड़ा और जीता।

दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा कार्यकर्ता उत्साह से लबरेज हैं। चुनाव नतीजे के बाद भाजपा ने राजस्थान में कैबिनेट मंत्री डॉक्टर किरोड़ी लाल मीणा व हरियाणा में कैबिनेट मंत्री अनिल विज को उनके पार्टी विरोधी बयानों पर कारण बताओ नोटिस जारी कर यह जता दिया कि भाजपा में अनुशासन की लक्ष्मण रेखा पार करने का किसी को भी अधिकार नहीं है। चाहे वह कितना ही बड़ा नेता क्यों ना हो। यदि कोई पार्टी का अनुशासन तोड़ेगा तो उसके खिलाफ कार्यवाही होगी।

कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में लगातार जीतने से जहां भाजपा नेताओं का मनोबल बढ़ा हुआ है। वहीं, इंडी गठबंधन में आपसी आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। यदि विपक्षी दलों में खींचतान बढ़ती है तो आगे आने वाले विधानसभा चुनावों में उसका फायदा भी भाजपा को ही मिलना सुनिश्चित लग रहा है।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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